• Powered by

  • Anytime Astro Consult Online Astrologers Anytime

Rashifal राशिफल
Raj Yog राज योग
Yearly Horoscope 2024
Janam Kundali कुंडली
Kundali Matching मिलान
Tarot Reading टैरो
Personalized Predictions भविष्यवाणियाँ
Today Choghadiya चौघडिया
Rahu Kaal राहु कालम

2020 आश्विन पूर्णिमा

date  2020
Bhatinda, Punjab, India

आश्विन पूर्णिमा
Panchang for आश्विन पूर्णिमा
Choghadiya Muhurat on आश्विन पूर्णिमा

 जन्म कुंडली

मूल्य: $ 49 $ 14.99

 ज्योतिषी से जानें

मूल्य:  $ 7.99 $4.99

अश्विन पूर्णिमा क्या है?

हिंदू चंद्र महीने अश्विन के दौरान आने वाली पूर्णिमा को अश्विन पूर्णिमा (Ashwin Purnima) कहा जाता है। इसे फसल के त्योहार के रूप में मनाया जाता है और यह मानसून के अंत का प्रतीक है। रात्रि के समय देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है। अश्विन पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा, कोजागरी पूर्णिमा और कुन्नर पूर्णिमा के रूप में भी जाना जाता है। इस त्योहार को वृंदावन, ब्रज और नाथद्वारा में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है।

अश्विन पूर्णिमा की कहानी या कथा क्या है?

कथा के अनुसार, एक व्यापारी की दो बेटियां थीं। वे दोनों भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी का आशीर्वाद पाने के लिए पूर्णिमा व्रत रखती थीं। बड़ी बेटी पूर्णिमा व्रत का अनुष्ठान पूरे संस्कारों के साथ करती थी जबकि छोटी बेटी व्रत अनुष्ठान से उपेक्षा करती रहती थी।

शादी के बाद, बड़ी बेटी को एक स्वस्थ बेटे की प्राप्ति हुई, लेकिन छोटे बेटी की संतान अधिक समय तक जीवित नहीं रहती थी। ऐसा कई बार हुआ। जन्म लेते ही उसके सभी बच्चों की मृत्यु हो गई। इन घटनाओं से परेशान होकर, उसने एक संत से मिलकर इसके समाधान के बारे में पूछा। साधु ने उसे बताया कि यह सब इसलिए हुआ क्योंकि उसने पूर्णिमा व्रत का पालन बिना किसी भक्ति और उचित अनुष्ठान के किया है। उसे अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने पूर्ण अनुष्ठान के साथ शरद पूर्णिमा व्रत का पालन किया। हालाँकि, उसके बाद भी उसके अगले बच्चे की जन्म के तुरंत बाद मृत्यु हो गई।

उसको पता था कि उसकी बड़ी बहन को भगवान चंद्र का आशीर्वाद प्राप्त है और वह उसके बच्चे को फिर से जीवित कर सकती है। उसने अपने बेटे के शव को एक छोटे से बिस्तर पर छिपा दिया और उसे कपड़े से ढक दिया। बाद में, उसने अपनी बड़ी बहन को बुलाया और उसे उसी बिस्तर पर बैठने के लिए कहा, जहां उसका बेटा लेटा हुआ था। जब उसकी बड़ी बहन उस बिस्तर पर बैठी तो उसके कपड़े मृत बच्चे के शरीर को छू रहे थे। इससे उस बच्चे का जीवन वापस आ गया और वह रोने लगा। बड़ी बहन इस बात से चैंक गई और उसने अपनी छोटी बहन को डांटा और उससे ऐसा करने का कारण पूछा। छोटी बहन ने उसे बताया कि उसके स्पर्श के कारण बच्चे को उसका जीवन वापस मिल गया है। जैसे-जैसे उसने पूर्ण भक्ति के साथ पूर्णिमा का व्रत रखा, वह पवित्र हो गई और आशीर्वाद प्राप्त किया। तब से, भक्तों के बीच शरद पूर्णिमा व्रत प्रसिद्ध हो गया और वे भगवान चंद्र, भगवान विष्णु और देवी महा लक्ष्मी का आशीर्वाद पाने के लिए अश्विन पूर्णिमा के दिन व्रत का पालन करने लगे।

अवश्य पढ़ें : 7 प्रदोष व्रत कथा

अश्विन पूर्णिमा का क्या महत्व है?

अश्विन पूर्णिमा या शरद पूर्णिमा वह दिन है जब चंद्रमा पृथ्वी के सबसे करीब आता है। इस दिन, चंद्रमा सबसे ज्यादा चमकता है और इसकी रोशनी सुखदायक और उपचारीक बन जाती है। आसमान में धूल और कालापन नहीं होता है और मौसम काफी अनुकूल बनता है। ऐसा माना जाता है कि शरद पूर्णिमा, पूर्णिमा का एकमात्र दिन होता है जब चंद्रमा अपने 16 काल या गुणों से परिपूर्ण होता है। इस दिन, चंद्रमा अनंत काल या अमृत का सुख देता है और चंद्रमा का प्रकाश उन गुणों से परिपूर्ण होता है जो किसी के शरीर और आत्मा को पोषण दे सकते हैं। इस प्रकार, शरद पूर्णिमा के दिन, लोग तांबे के बर्तन में पानी रखते हैं या पूरी रात चंद्रमा की रोशनी में चावल-खीर रखते हैं। और अगली सुबह इसे खाते हैं और इसे अपने परिवार और रिश्तेदारों के बीच वितरित भी करते हैं।

भारत के कुछ हिस्सों में, शरद पूर्णिमा भगवान कृष्ण के साथ जुड़ी हुई है, जिनके बारे में कहा जाता है कि वे व्यक्तित्व की सोलह कलाओं के साथ पैदा हुए थे। ब्रज में, यह रास पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है, जिस दिन भगवान कृष्ण देवी राधा और अन्य गोपियों के साथ महा रास या प्रेम का दिव्य नृत्य करते हैं।

हिंदू शास्त्रों के अनुसार, धन और समृद्धि की देवी माता लक्ष्मी का जन्म शरद या अश्विन पूर्णिमा के दिन हुआ था। कहा जाता है कि अश्विन पूर्णिमा पर देवी लक्ष्मी रात में पृथ्वी का चक्कर लगाती हैं और सभी मनुष्यों के कार्यों को देखती हैं।

शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा के रूप में भी जाना जाता है जिसका शाब्दिक अर्थ है पूरी रात जागना। ऐसा कहा जाता है कि जो लोग शरद पूर्णिमा की पूरी रात जागते रहते हैं और देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं, उन्हें देवी का असीम आशीर्वाद और धन प्राप्त होता है, भले ही उनकी जन्म कुंडली में कोई धन योग न हो।

ओडिशा में शरद पूर्णिमा को कुमार पूर्णिमा कहा जाता है। इस दिन लड़कियां उपवास रखती हैं और एक उपयुक्त जीवनसाथी पाने के लिए भगवान कार्तिकेय की पूजा करती हैं। वे शाम को चंद्रमा की पूजा करने के बाद अपना उपवास तोड़ती हैं।

अवश्य देखें : सत्यनारायण पूजा की तिथियाँ

शरद पूर्णिमा के दिन किए जाने वाले अनुष्ठान क्या हैं?

शरद पूर्णिमा के त्योहार पर विभिन्न विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं। आईए यहाँ जानते हैं।

  • सुबह जल्दी उठकर पवित्र नदी, तालाब या सरोवर में स्नान करें।
  • पूर्णिमा व्रत का पालन करें और आस-पास के मंदिर में जाऐं या घर पर प्रार्थना करें और भगवान कृष्ण और देवी लक्ष्मी की मूर्तियों को सुंदर कपड़ों और आभूषणों से सजाएँ। इसके बाद, भगवान की पूजा करें और दीपक या दीये, सुपारी या पान, नैवेद्यम, फूल, चावल, वस्त्र, इत्र और विशेष प्रसाद या दक्षिणा अर्पित करें।
  • गाय के दूध से बनी खीर तैयार करें और उसमें थोड़ा सा घी और चीनी मिलाएँ। शरद पूर्णिमा की रात इस खीर को भगवान को अर्पित करें।
  • तांबे के बर्तन में पानी भरें, एक गिलास में गेहूं के दाने और पत्तियों से बनी थाली में चावल रखें और फिर इस बर्तन की पूजा करें और दक्षिणा चढ़ाएं। इसके बाद, अश्विन पूर्णिमा की कहानी सुनें और भगवान का आशीर्वाद लें।
  • जब चंद्रमा आकाश के मध्य में हो और अपनी पूरी चांदनी के साथ चमक रहा हो, भगवान चंद्र की पूजा करें और खीर को नैवेद्यम के रूप में अर्पित करें।
  • खीर को पूरी रात के लिए चंद्रमा की रोशनी में रखें और अगले दिन इसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करें। इस खीर का सेवन करना और इसे दूसरों के बीच वितरित करना स्वास्थ्यवर्धक माना जाता है।
  • भगवान शिव, देवी पार्वती और भगवान कार्तिकेय की पूजा करना बहुत ही शुभ माना जाता है।

पुरे वर्ष भर में पड़ने वाले पूर्णिमा व्रत

हिन्दू कैलेंडर जो की चैत्र माह (मार्च-अप्रैल) से प्रारम्भ होता है के अनुसार वर्षभर में पड़ने वाली पूर्णिमा निम्नानुसार है:-

क्र. सं. हिंदू महीना पूर्णिमा व्रत नाम अन्य नाम या उसी दिन के त्यौहार
1 चैत्र चैत्र पूर्णिमा हनुमान जयंती
2 वैशाख वैशाख पूर्णिमा बुद्ध पूर्णिमा, कूर्म जयंती
3 ज्येष्ठ ज्येष्ठ पूर्णिमा वट पूर्णिमा व्रत
4 आषाढ़ आषाढ़ पूर्णिमा गुरु पूर्णिमा, व्यास पूजा
5 श्रावण श्रावण पूर्णिमा रक्षाबंधन, गायत्री जयंती
6 भाद्रपद भाद्रपद पूर्णिमा पूर्णिमा श्राद्ध, पितृपक्ष आरंभ
7 अश्विन आश्विन पूर्णिमा शरद पूर्णिमा, कोजागरा पूजा
8 कार्तिक कार्तिक पूर्णिमा देव दीपावली
9 मार्गशीर्ष मार्गशीर्ष पूर्णिमा दत्तात्रेय जयंती
10 पौष पौष पूर्णिमा शाकंभरी पूर्णिमा
11 माघ माघ पूर्णिमा गुरु रविदास जयंती
12 फाल्गुन फाल्गुन पूर्णिमा होलिका दहन, वसंत पूर्णिमा

Chat btn