शारदीय नवरात्री 2004 के नव दिवसीय उत्सव की समाप्ति पर दुर्गा विसर्जन किया जाता है। मां दुर्गा की प्रतिमा को विजयदशमी अथवा दशहरा के अवसर पर विसर्जित किया जाता है। भारतीय पंचांग के अश्विन मास को मनाये जाने वाले इस उत्सव को मुख्यत: पूर्व भारत के राज्य, पश्चिम बंगाल, आसाम, उड़ीसा तथा बिहार एवं महाराष्ट्र के कुछ भागों में उत्साहपूर्वक मनाया जाता है।
हिन्दू पंचांग के अनुसार दुर्गा विसर्जन आश्विन शुक्ल दशमी को किया जाता है।
ऐसी मान्यता है कि इस दिन माता दुर्गा अपने आध्यात्मिक निवास कैलाश पर्वत पर वापस लौटती हैं। इसी कारण से मां दुर्गा के भक्तों के लिए इस दिन का आध्यात्मिक महत्व है। इस दिन कई व्यक्ति अपने उपवास का पारणा करते हैं।
सिदूर खेला इस उत्सव की दूसरी महत्वपूर्ण परम्परा है। महिलाये विदाईस्वरूप मां दुर्गा एवं परस्पर सिदूर लगा कर मां दुर्गा को मिठाई अर्पित करती हैं। इस परम्परा को ठाकुर बोरोन के नाम से जाना जाता है। इसी के साथ महिलाएं अपने पति की लम्बी आयु एवं परिवार की सुख समृधि की कामना करती हैं।
अंत में बड़े जुलूस के साथ प्रतिमा को विसर्जन के लिए ले जाया जाता है तथा श्रद्धालु इस विश्वास के साथ पूजनीय मां का विसर्जन करते है कि अगले वर्ष वे माता दुर्गा की आराधना कर सकेंगे। इस उत्सव का मां दुर्गा के भक्तों के लिए विशेष महत्व है तथा भारत के अधिकतर भागों में श्रद्धा और उत्साह से मनाया जाता है।
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