हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, व्रत का शाब्दिक अनुवाद एक प्रतिज्ञा है, लेकिन इसके संदर्भ में, यह सर्वशक्तिमान भगवान के प्रति समर्पण व्यक्त करने का एक साधन है। और उपवास एक शुभ संस्कार है जो पवित्र मंत्र और प्रार्थना के साथ इस अवधारणा का एक अभिन्न अंग है। परंपरागत रूप से, यह महिलाओं द्वारा अपने प्रियजनों के लिए अच्छा स्वास्थ्य और समृद्धि सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है, धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण व्रतों में से एक कोकिला व्रत, देवी पार्वती से जुड़ा हुआ है। यह आषाढ़ के पवित्र महीने की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। हालाँकि, देश के कुछ हिस्सों में यह माना जाता है कि कोकिला व्रत तभी मनाया जाता है जब आषाढ़ का महीना अधिक मास के दौरान आता हो।
हिंदू पंचांग 2026 के अनुसार, इस वर्ष कोकिला व्रत का पवित्र आयोजन आषाढ़ पूर्णिमा के दिन किया जाएगा।
कोकिला व्रत पूजा मुहूर्त के लिए देखे शुभ चौघड़िया।
जैसा कि उल्लेख है, महिलाओं द्वारा कोकिला व्रत का पालन पूरे देश में आषाढ़ पूर्णिमा के दिन किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति इस शुभ दिन को पूरी श्रद्धा के साथ मनाता है वह हमेशा के लिए अपने वैवाहिक जीवन में वचनबद्ध रहेगा। कुछ भी, यहां तक कि मौत भी उन्हें अलग नहीं कर सकती। यह भी कहा जाता है कि इस समयाअवधि के दौरान व्रत रखने वाली महिलाओं को समृद्धि, सौभाग्य, कल्याण और धन की प्राप्ति होती है। कोकिला व्रत अविवाहित महिला के लिए भी बहुत महत्व रखता है। यह माना जाता है कि लड़कियों को अच्छे पति की कामना के लिए इस शुभ व्रत का पालन करना चाहिए और देवी पार्वती से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए कोयल पक्षी की मूर्ति से प्रार्थना करनी चाहिए। यह महिलाओं को विभिन्न दोषों से छुटकारा पाने में मदद कर सकता है जैसे कि भौमा दोष जो उनके विवाहित जीवन की बाधाओं को दूर करता है।
महत्वपूर्ण जानकारी आने वाले प्रमुख हिन्दू त्योहार।
हिंदू पौराणिक कथाओं में, पूजा की परंपरा देवताओं और मूर्तियों तक सीमित नहीं हैः इसमें पेड़, पक्षी और जानवर भी शामिल हैं। विशेष रूप से गाय, एक ऐसा जानवर है जिसे पवित्र माना जाता है क्योंकि यह माना जाता है कि तीनों लोकों के साथ-साथ पूरा ब्रह्मांड गाय के अंदर निवास करता है। इसलिए कोकिला व्रत के दौरान गाय की पूजा करना बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है।
जिस दिन व्रत शुरू होता है, उस दिन कोकिला व्रत का पालन करने वाली महिलाओं को ब्रह्ममुहूर्त में, यानी सूर्योदय से पहले उठना चाहिए और जितनी जल्दी हो सके सभी दिनचर्या के कार्यों को पूरा करना चाहिए। उसे आंवले के गूदे और पानी के मिश्रण से स्नान करना चाहिए। यह अनुष्ठान अगले आठ से दस दिनों तक चलता है। व्रत की शुरुआत भगवान सूर्य की पूजा करने के बाद, चने के मोटे आटे से बनी दिन की पहली रोटी गाय को भेंट करके की जाती है। फिर, हल्दी, चंदन, रोली, चावल और गंगाजल का उपयोग करके कोयल पक्षी की मूर्ति की अगले आठ दिनों तक पूजा की जाती है। यहां कोयल पक्षी देवी पार्वती का प्रतीक है। भक्तों को सूर्यास्त होने तक उपवास रखना चाहिए और कोकिला व्रत कथा सुनकर और यदि संभव हो तो कोयल पक्षी को देखने के बाद इसका समापन करना चाहिए।
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महिलाओं को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए, मन को शांत बनाए रखना चाहिए और इस पूरे समय किसी के लिए नकारात्मक या दुर्भावनापूर्ण विचार नहीं रखने चाहिए।
दक्ष प्रजापति नाम का एक राजा था जो भगवान विष्णु का भक्त था। एक बार उन्होंने एक भव्य हवन का आयोजन किया और भगवान शिव को छोड़कर सभी देवताओं को आमंत्रित किया, जिन्होंने उनकी बेटी सती से शादी की थी। जब देवी सती को इसके बारे में पता चला, तो उन्होंने भगवान शिव से अनुरोध किया कि वह उन्हें उसके पिता के यहाँ जाने दे, और भगवान शिव इसके लिए मान गए। लेकिन जब वह वहां पहुंची, तो वह अपने पिता द्वारा भगवान शिव पर लगाए गए आरोपों ओर अपमानजनक बातों से बेहद दुखी हो गईं। वह इतनी परेशान हो गई कि वह हवन की आग में कूद गई। जब यह समाचार भगवान शिव को मिला, तो वे क्रुद्ध हो गए और उन्होनें अपने अवतार वीरभद्र को हवन का नाश करने और राजा दक्ष को मारने के लिए भेजा। वह इतना क्रोधित थे कि उन्होने देवी सती को अगले दस हजार वर्षों के लिए कोयल पक्षी होने का श्राप दिया क्योंकि देवी सती ने उनके आदेशों का पालन नहीं किया था। इसके बाद देवी सती ने शैलजा के रूप में पुनर्जन्म लिया और भगवान शिव को अपने पति के रूप में वापस पाने के लिए आषाढ़ के पूरे महीने उपवास किया।
सभी हिन्दू देवी देवताओ और भगवानो की फोटो।
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