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2586 विनायक चतुर्थी Columbus, Ohio, United States

date  2586
Columbus, Ohio, United States

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विनायक चतुर्थी

2586

Columbus, Ohio, United States

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विनायक चतुर्थी

हिन्दू पंचांग में हर एक चन्द्र महीने में दो चतुर्थी तिथि होती है। पूर्णिमा के बाद कृष्ण पक्ष में आने वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है तथा अमावस्या के बाद शुक्ल पक्ष में आने वाली चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहा जाता है। भारत के उत्तरी एवं दक्षिणी राज्यों में संकष्टी चतुर्थी का त्यौहार मनाया जाता है। संकष्टी शब्द संस्कृत भाषा से लिया गया है जिसका मतलब होता है ‘कठिन समय से मुक्ति पाना’ ।

साल 2586 के लिए विनायक चतुर्थी की सूची

तिथि दिनांक तिथि का समय

विनायक चतुर्थी जनवरी 2586

14 जनवरी

(शनिवार)

समय देखें

विनायक चतुर्थी फरवरी 2586

13 फरवरी

(सोमवार)

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विनायक चतुर्थी मार्च 2586

15 मार्च

(बुधवार)

समय देखें

विनायक चतुर्थी अप्रैल 2586

13 अप्रैल

(गुरुवार)

समय देखें

विनायक चतुर्थी अप्रैल 2586

14 अप्रैल

(शुक्रवार)

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विनायक चतुर्थी मई 2586

13 मई

(शनिवार)

समय देखें

विनायक चतुर्थी जून 2586

11 जून

(रविवार)

समय देखें

विनायक चतुर्थी जुलाई 2586

11 जुलाई

(मंगलवार)

समय देखें

विनायक चतुर्थी अगस्त 2586

09 अगस्त

(बुधवार)

समय देखें

विनायक चतुर्थी सितम्बर 2586

07 सितम्बर

(गुरुवार)

समय देखें

विनायक चतुर्थी अक्तूबर 2586

06 अक्तूबर

(शुक्रवार)

समय देखें

विनायक चतुर्थी नवम्बर 2586

05 नवम्बर

(रविवार)

समय देखें

विनायक चतुर्थी दिसम्बर 2586

04 दिसम्बर

(सोमवार)

समय देखें

विनायक चतुर्थी कब है?

मुख्य विनायक चतुर्थी भाद्रपद महीने में आती है, हालांकि विनायक चतुर्थी प्रत्येक महीने में आती है। भाद्रपद महीने की विनायक चतुर्थी को ‘गणेश चतुर्थी’ कहा जाता है। गणेश चतुर्थी हिन्दूओं का अत्यधिक शुभ त्यौहार है जो कि सम्पूर्ण भारत सहित पूरे विश्व में मनाया जाता है।

गणेश चतुर्थी को विनायक चतुर्थी भी कहा जाता है जो कि हिन्दूओं का अत्यधिक शुभ त्यौहार है, यह पूरी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। ‘भगवान श्रीगणेशजी’ समृद्धि, ज्ञान व अच्छे भाग्य के प्रतीक हैं। यह त्यौहार पूरे भारत में 11 दिन पूरे उत्साह व जुनून के साथ मनाया जाता है।

गणेश चतुर्थी/विनायक चतुर्थी का महत्व

गणेश चतुर्थी, जिन्हें विनायक चतुर्थी भी कहा जाता है, यह एक हिंदू त्यौहार है जो हिंदू धर्म के अन्य देवताओं में सबसे प्रथम पूजनीय भगवान गणेश के महत्व को दर्शाता है। हिंदू कैलेंडर के भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष के चैथे दिन यह त्यौहार मनाया जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार, यह दिन आम तौर पर अगस्त या सितंबर महीने के आसपास आता है। गणेश चतुर्थी के दिन, श्रद्धालू दस दिनों के लिए पूजा की वेदी पर भगवान श्रीगणेशजी की प्रतिमा को स्थापित कर उनके जन्म दिवस को मनाते हैं।

गणेश चतुर्थी उत्सव को भारत के महाराष्ट्र राज्य में बहुत उत्साहए जोश और भव्यता से मनाया जाता है। महाराष्ट्र की सामान्य आबादी उन्हें अपने दिव्य भगवान के रूप में देखती है और इस 10 दिवसीय उत्सव के बीच ‘गणपति बप्पा मोरिया’ के मंत्रों का उच्चारण करती है। दसवें दिन, संगीत और भजनों के साथ गणपति जी की शोभायात्रा निकाली जाती हैं। उसके बाद मूर्तियों को समुद्र में या अन्य बहते पानी में विसर्जित किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि हर साल भगवान गणेश कैलाश पर्वत से 10 दिन तक अपने भक्तों की इच्छाओं को पूरा करने के लिए उतरते हैं, और अंतिम दिन वे अपने लोक में माता पार्वती और भगवान शिव के पास वापस लौट जाते हैं। यह उनके श्रद्धालुओं के लिए सबसे भावुक समय होता है और, वे उनसे अगले साल (हिंदीः गणपति बप्पा मोरिया, अगले बरस तू जल्दी आ) उनसे जल्दी आने वाले वादापूर्ण वादे का अनुरोध करके उन्हें विदाई देते हैं।.

भगवान गणेश के जन्म से जुड़ी कथा के अनुसार भगवान गणेशजी को देवी पार्वती द्वारा उनके स्नान करते समय मार्ग की निगरानी रखने के लिए मिट्टी से बनाया गया था, जब वे स्नान कर रहीं थीं, उसी समय भगवान शिव आ गये, जब अज्ञानी भगवान गणेश ने प्रवेश से इनकार किया, तो भगवान शिव आक्रामक हो गये और दोनों के बीच युद्ध के दौरान भगवान शिव गणेशजी का सिर धड़ से अलग कर देते हैं। इस पर माता पार्वती क्रोधित हो गई और उन्होनें भगवान शिव से अपने बच्चे के जीवन को वापस देने का अनुरोध किया। शिव ने उन्हें बताया कि यह प्रकृति के नियमों के खिलाफ है एक बार कटा हुआ सिर अपने मूल स्थान पर वापिस नहीं जा सकता है। हालांकि, उन्हें नियमों में बाहर आने का एक रास्ता मिला, और देवताओं को एक ऐसे मृत व्यक्ति की तलाश करने के लिए समन्वय किया गया जो अभी भी उत्तर दिशा की ओर मुंह किया हुआ हो।

गणेश चतुर्थी की कहानी के मुताबिक देवता इस जरूरत को पूरा करने के लिए केवल एक मृत को ही ढूंढ पाये, इसलिए वे इस सिर को ले आये और भगवान शिव को दे दिया और उन्होनें इसे भगवान श्रीगणेशजी की धड़ से जोड़ दिया। यह भगवान गणेशजी की कई व्याख्याओं में से एक है जिसे वक्रतुंड और गजानंद कहा जाता है।.

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