गौरी पूजा महाराष्ट्र की महिलाओं के लिया एक विशेष उत्सव एवं महत्व रखता है। यह पूजा महाराष्ट्र में 'मंगला गौरी' के रूप में उल्लेखनीय भी है। यह उत्सव मुख्य रूप से महाराष्ट्र में मनाया जाता है। यह गणेश चतुर्थी के चौथे या पांचवें दिन के बीच आता है। यह हर वर्ष का मुख्य उत्सव होता है जिसको महिलाएं उत्साह के साथ मनाती हैं। हिंदुओं के अनुसार मंगला का अर्थ स्वर्गीय और होनहार है। पूरी रात महिलाओं के लिए हर्ष और उत्साह से भरी हुई है। इस उत्सव नव विवाहित महिलाओ के लिये विशेष महत्व रखता है, उनकी पहली मंगला गौरी पूजा जीवन में आवश्यक रूप से देखा गया है। प्रत्येक महिला इस दिन नई साड़ी और सभी पारंपरिक श्रंगार पहनती है। राजस्थान में इससे मिलता जुलता गणगौर उत्सव मनाया जाता है।
गौरी पूजन की रात को हर एक महिला मंगला गौरी की धुन गाती है। इन धुनों में एक प्रथागत आधार है जिसमे हिंदू विवाहित महिलाओं के जीवन का मार्ग दिखाया गया है। मंगला गौरी आयोजन में भाग लेने वाली जगराता करती है और विभिन्न प्रकार के उत्सव मानती है। इस आयोजन के बीच में जिम्मा और फुगड़ी के नाम से जाने जाने वाले मनोरंजन खेल खेले जाते हैं। जिम्मा में महिलाएं तालियां बजाती हैं और एक दूसरे को बधाई देती हैं। महिला मंडली गोल-गोल घूम के तालिया बजाती हुई नाचती और गाना गाती है।
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