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1965 शरद पूर्णिमा

date  1965
New Delhi, NCT, India

शरद पूर्णिमा
Panchang for शरद पूर्णिमा
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शरद पूर्णिमा 1965 – महत्व तथा उत्सव

शरद पूर्णिमा हिन्दू पंचांग में सर्वाधिक धार्मिक महत्व वाली पूर्णिमा है। यह शरद ऋतू में आती है तथा इसे अश्विन मास (सितंबर- अक्टूबर) की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस उत्सव को कौमुदी अर्थात चन्द्र प्रकाश अथवा कोजागरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। भारत के कई राज्यों में शरद पूर्णिमा को फसल कटाई के उत्सव के रूप में मनाते हैं तथा इस दिवस से वर्षा काल की समाप्ति तथा शीत काल की शुरुआत होती है।

1965 शरद पूर्णिमा कब है – तिथि तथा समय

भारतीय पंचांग के अनुसार शरद पूर्णिमा का उत्सव अश्विन मास (सितंबर- अक्टूबर) की पूर्णिमा को मनाया जाता है। शुभ समय के लिए आज का चौघड़िया देखे एवं जाने आज के दिन चन्द्र दर्शन का क्या महत्व है?

शरद पूर्णिमा (रास पूर्णिमा) का महत्व 

1965 शरद पूर्णिमा वह धार्मिक पर्व है जिसमें चन्द्रमा के पूर्ण स्वरूप का उत्सव मनाया जाता है। इस दिन चन्द्र देव पूरी 16 कलाओं के साथ उदय होते हैं। भारतीय ज्योतिष शास्त्र के अनुसार प्रत्येक कला मनुष्य की एक विशेषता का प्रतिनिधित्व करती है तथा सभी 16 कलाओं से सम्पूर्ण व्यक्तित्व बनता है। यह मान्यता है कि श्री कृष्ण सभी सोलह कलाओं से युक्त थे।

शरद पूर्णिमा 1965 के दिन चन्द्रमा से उत्पन्न होने वाली रश्मियाँ (किरणें) अद्भुत स्वास्थ्प्रद तथा पुष्टिवर्धक गुणों से भरपूर होती है। साथ ही यह मान्यता भी है कि इस दिन चंद्र प्रकाश से अमृत की वर्षा होती है। श्रद्धालु इस दिन खीर बना कर इसे चन्द्रमा के सभी सकारात्मक एवं दिव्य गुणों के लिए इस मिष्ठान के बर्तन को चन्द्र प्रकाश के सीधे संपर्क में रखते हैं। इस खीर को प्रसाद के रूप में अगली सुबह वितरित किया जाता है।

नवविवाहिता स्त्रियों द्वारा किये जाने वाले पूर्णिमा व्रत का प्रारंभ शरद पूर्णिमा पर्व से होता है, यह दिवस धन की देवी, माता लक्ष्मी से भी सम्बंधित है। ऐसी मान्यता है कि शरद पूर्णिमा को व्रत रख कर पुर्ण रात्री माता लक्ष्मी का पूजन करने से व्यक्ति की कुण्डली में लक्ष्मी योग नहीं होने के उपरांत भी अथाह धन तथा वैभव की प्राप्ति होती है।

शरद पूर्णिमा के उत्सव को भगवान कृष्ण से भी जोड़ा गया है। इसे रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता यह है कि शरद पूर्णिमा की रात्रि को प्रभु श्री कृष्ण ने गोपियों के साथ महा रास नामक दिव्य नृत्य किया था। बृज तथा वृन्दावन में रास पूर्णिमा को वृहद स्तर पर मनाया जाता है।

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