MAA SIDDHIDATRI AARTI VRAT KATHA PUJA VIDHI
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On the ninth day of Durga Puja, Maa Siddhidatri is worshipped. She is the ninth incarnation of Devi Durga and referred to as Navratri’s 9th day Devi. Maa Siddhidatri symbolizes Siddhis, accomplishments, and meditative ability.
Appease the powerful Maa Siddhidatri! Sing Navratri’s 9th-day aarti and listen to its Katha. Find Maa Siddhidatri aarti lyrics and 9th day Navratri Vrat Katha below along with Mantra and Puja Vidhi.
जय सिद्धिदात्री मां तू सिद्धि की दाता ।
तू भक्तों की रक्षक तू दासों की माता ।।
तेरा नाम लेते ही मिलती है सिद्धि ।
तेरे नाम से मन की होती है शुद्धि ।।
कठिन काम सिद्ध करती हो तुम ।
जभी हाथ सेवक के सिर धरती हो तुम ।।
तेरी पूजा में तो ना कोई विधि है ।
तू जगदंबे दाती तू सर्व सिद्धि है ।।
रविवार को तेरा सुमिरन करे जो ।
तेरी मूर्ति को ही मन में धरे जो ।।
तू सब काज उसके करती है पूरे ।
कभी काम उसके रहे ना अधूरे ।।
तुम्हारी दया और तुम्हारी यह माया ।
रखे जिसके सिर पर मैया अपनी छाया ।।
सर्व सिद्धि दाती वह है भाग्यशाली ।
जो है तेरे दर का ही अंबे सवाली ।।
हिमाचल है पर्वत जहां वास तेरा ।
महा नंदा मंदिर में है वास तेरा ।।
मुझे आसरा है तुम्हारा ही माता ।
भक्ति है सवाली तू जिसकी दाता ।।
सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि,
सेव्यमाना सदा भूयात सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।
नवरात्रि का नवां दिन मां सिद्धिदात्री का है जिनकी आराधना से व्यक्ति को सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती है उसे बरे कर्मों से लडऩे की शक्ति मिलती है। मां सिद्धिदात्री की आराधना से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
कमल के आसन पर विराजमान मां सिद्धिदात्री के हाथों में कमल, शंख गदा, सुदर्शन चक्र है जो हमें बुरा आचरण छोड़ सदकर्म का मार्ग दिखाता है। आज के दिन मां की आराधना करने से भक्तों को यश, बल व धन की प्राप्ति होती है।
मां सिद्धिदात्री का नौंवा स्वरूप हमारे शुभ तत्वों की वृद्धि करते हुए हमें दिव्यता का आभास कराता है। मां की स्तुति हमारी अंतरात्मा को दिव्य पवित्रता से परिपूर्ण करती है हमें सत्कर्म करने की प्रेरणा देती है। मां की शक्ति से हमारे भीतर ऐसी शक्ति का संचार होता है जिससे हम तृष्णा व वासनाओं को नियंत्रित करके में सफल रहते हैं तथा जीवन में संतुष्टिi की अनुभूति कराते हैं।
मां का दैदीप्यमान स्वरूप हमारी सुषुप्त मानसिक शक्तियों को जागृत करते हुए हमें पर नियंत्रिण करने की शक्ति व सामथ्र्य प्रदान करता है। आज के दिन मां दुर्गा के सिद्धिदात्री रूप की उपासना हमारी अनियंत्रित महत्वाकांक्षाए, असंतोष, आलस्य, ईष्र्या, परदोषदर्शन, प्रतिशोध आदि दुर्भावनाओं व दुर्बलताओं का समूल नाश करते हुए सदगुणों का विकास करती है।
मां के आर्शीवाद से ही हमारे भीतर सतत क्रियाशीलता उत्पन्न होती है जिससे हम कठिन से कठिन मार्ग पर भी सहजता से आगे बढ़ते जाते हैं। मां दुर्गा की नावों शक्तियों का नाम सिद्धिदात्री है. ये अष्टसिद्धियां प्रदान करने वाली देवी है देवी पुराण के अनुसार भगवान शिव ने इन्हीं शक्ति स्वरूपा देवी की उपासना करके सभी शक्तियां प्राप्त की थीं जिसके प्रभाव से शिव का आधा शरीर स्त्री का हो गया था। शिवजी का यह स्वरूप अर्धनारीश्वर के नाम से प्रसिद्ध हुआ। मां सिद्धिदात्री सिंहवाहिनी, चतुर्भुज तथा सर्वदा प्रसन्नवंदना है। देवी सिद्धिदात्री की पूजा के लिए नवाहन का प्रसाद, नवरस युक्त भोजन तथा नौ प्रकार के फल-फूल अदि का अर्पण किया जाता है।
इस तरह नवरात्र के नवें दिन मां सिद्धिदात्री की आराधना करने वाले भक्तों को धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष की होती है। सिद्धिदात्री को देवी सरस्वती का भी स्वरूप कहा जाता है जो श्वेत वस्त्र धारण किए भक्तों का ज्ञान देती है।
मां के चरणों में शरणागत होकर हमें निरंतर नियमनिष्ठ रहकर उपासना करना चाहिए। इस देवी का स्मरण, ध्यान, पूजन हमें इस संसार की असारता का बोध कराते हैं और अमृत पद की ओर ले जाते हैं।
हिन्दू धर्म के पुराणों में बताया गया है कि देवी सिद्धिदात्री के चार हाथ है जिनमें वह शंख, गदा, कमल का फूल तथा चक्र धारण करे रहती हैं। यह कमल पर विराजमान रहती हैं। इनके गले में सफेद फूलों की माला तथा माथे पर तेज रहता है। इनका वाहन सिंह है। देवीपुराण और ब्रह्मवैवर्त पुराण में देवी की शक्तियों और महिमाओं का बखान किया गया है।
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दुर्गा पूजा में इस तिथि को विशेष हवन किया जाता है। यह नौ दुर्गा आराधना का अंतिम दिन भी होता है तो इस दिन माता सिद्धिदात्री के बाद अन्य देवताओं की भी पूजा की जाती है। सर्वप्रथम माता जी की चौकी पर सिद्धिदात्री माँ की तस्वीर या मूर्ति रख इनकी आरती और हवन किया जाता है। हवन करते वक्त सभी देवी दवताओं के नाम से हवि यानी अहुति देनी चाहिए। बाद में माता के नाम से अहुति देनी चाहिए।
दुर्गा सप्तशती के सभी श्लोक मंत्र रूप हैं अत: सप्तशती के सभी श्लोक के साथ आहुति दी जा सकती है। देवी के बीज मंत्र “ऊँ ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे नमो नम:” से कम से कम 108 बार हवि दें। भगवान शंकर और ब्रह्मा जी की पूजा पश्चात अंत में इनके नाम से हवि देकर आरती करनी चाहिए। हवन में जो भी प्रसाद चढ़ाया है जाता है उसे समस्त लोगों में बांटना चाहिए।
Maa Siddhidatri is the ninth manifestation of Goddess Durga and is worshipped on the ninth day of Navratri as per the Indian calendar. The goddess’s name is derived from siddhi (supernatural powers) and dhatri (giver) and she is said to bestow all kinds of knowledge upon her worshippers.
It is said that Lord Shiva received all his siddhis from Maa Siddhidatri, who possesses eight Siddhis, namely anima (reducing oneself to the size of an atom), mahima (becoming infinitely large), prapti (omnipresence), prakamya (achieving anything one desires), garima (becoming infinitely heavy), laghima (weightlessness), ishitva (absolute lordship) and vashitva (power to subjugate all). According to mythology, the feminine half of Shiva in the Ardhanareshwar form is that of Goddess Siddhidatri.
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It is believed that the evolution of the three main forms of Shakti — Mahalaxmi, Mahasaraswati and Mahakali — began from Brahma, Vishnu and Mahesh, respectively. Each of these deities raised three more deities and therefore, nine different forms of Maa Durga were born. These nine forms together are known as Nav-Durga.
At the beginning of the Universe, Maa Siddhidatri appeared when Lord Rudra worshipped Adi-Parashakti, the formless Supreme Goddess, for the creation of the earth. Maa Siddhidatri also governs the planet Ketu. She is depicted with four arms, seated on a lotus. In each arm, she holds a lotus, mace, Sudarshan chakra, and Sankha (conch). She can grant 26 different wishes to her devotees.
ॐ देवी सिद्धिदात्र्यै नमः॥
Om Devi Siddhidatri yai Namaha॥
On the ninth day of Navratri or Durga Puja, a special havan is organized. Being the last day of the worship of Nav-Durga, other gods are also worshipped after the worship of Maa Siddhidatri.
To worship Maa Siddhidatri, start with performing aarti and havan in front of the idol or image of Maa Siddhidatri and give ahuti in her name. All the shlokas of Durga Saptshati are in the form of mantras, thus ahuti can be given by all shlokas of Saptshati.
This day, Mata Shiddhidatri should be made offerings in nine varieties — Navahan Prasad, food having Navras, nine kinds of flowers, and nine kinds of fruits. Nine young girls or kanyas, aged between 2 and 10 years, should be invited for kanya pujan. There should be at least 9 young girls. Maa Sidhdhidatri is the last one in the lineage of Nav-Durga. By singing the 9th day of aarti and listening to Maa Siddhidatri’s Katha the wishes of her worshippers get fulfilled.
A worshipper wins dharm, karm, kama and moksha in this mortal world by offering puja to Maa Siddhidatri. While offering prayers or meditating, one should fully concentrate on the Nirwana Chakra, situated in the middle of our Kapal. By doing so, bhakts gain direct access to the powers situated in the Nirwana chakra of Maa Sidhdhidatri. Jai Maa Siddhidatri!
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