क्या है नरक चतुर्दशी?
नरक चतुर्दशी एक हिंदू त्यौहार है जो दिवाली से एक दिन पहले यानि छोटी दिवाली पर मनाया जाता है। यह दानव नरकासुर पर भगवान श्रीकृष्ण की जीत का प्रतीक है। इस त्यौहार को काली चैदस या रूप चैदस के नाम से भी जाना जाता है।
कुछ भारतीय क्षेत्रों और संस्कृतियों में, यह माना जाता है कि यह देवी काली थीं जिन्होंने राक्षस नरकासुर का वध किया था। इस प्रकार यह काली चैदस के रूप में मनाया जाता है।
क्यों मनाई जाती है नरक चतुर्दशी?
भगवान श्रीकृष्ण और देवी काली ने नरकासुर को मारकर बुराई को समाप्त कर दिया। यह त्योहार उनकी जीत की याद दिलाता है। ऐसा माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने राक्षस को मारने के बाद, ब्रह्म मुहूर्त के दौरान, तेल से स्नान किया था। यही कारण है कि पूर्ण अनुष्ठान के साथ सूर्योदय से पहले तेल स्नान करना बहुत शुभ माना जाता है।
नरक चतुर्दशी एक शुभ दिन है जो सभी बुरी और नकारात्मक ऊर्जाओं को जीवन से दूर कर देता है। यह नई शुरुआत का दिन है जब हम अपने आलस्य से मुक्त होकर एक उज्ज्वल और समृद्ध भविष्य की नींव रखते हैं।
नरक चतुर्दशी कब है?
नरक चतुर्दशी 9999 हिंदू महीने कार्तिक के कृष्ण पक्ष के 14वें दिन या चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है।
कैसे मनाई जाती है नरक चतुर्दशी?
नरक चतुर्दशी के त्योहार से जुड़े कई तरह के पालन और अनुष्ठान हैंः
- भक्तों को दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए सूर्योदय से पहले तेल स्नान करना चाहिए।
- इस दिन को उत्तर भारत में छोटी दिवाली और दक्षिण भारत में तमिल दीपावली के रूप में मनाया जाता है।
- महाराष्ट्र में, भक्त इस दिन को अभ्यंग स्नान के रूप में मनाते हैं।
- पुरुष, महिलाएं और बच्चे समान रूप से नए कपड़े पहनते हैं, अपने घरों को सजाते हैं और अपने परिवार और दोस्तों के साथ स्वादिष्ट व्यंजनों का आनंद लेते हैं।
- महिलाएं अपने घरों में बहुतायत, समृद्धि और खुशी का स्वागत करने के लिए अपने पूरे घर को सुंदर मिट्टी के दीयों से सजाती हैं।
- पटाखे और आतिशबाजी भी इस त्योहार का एक महत्वपूर्ण पहलू है।
कैसे करें नरक चतुर्दशी पूजा?
नरक चतुर्दशी प्रमुख त्योहारों में से एक है जो दिवाली के दूसरे दिन मनाई जाती है। नरक चतुर्दशी पूजा की प्रक्रिया इस प्रकार हैः -
- लकड़ी की चैकी लें और पूजा स्थल पर एक लाल कपड़ा बिछाएं।
- चैकी पर भगवान गणेश और देवी लक्ष्मी की तस्वीर लगाएं।
- एक थाली लें और उसके ऊपर पहले एक लाल कपड़ा बिछाएं और फिर उसी पर कुछ चांदी के सिक्के रखें।
- अब, एक बड़ी प्लेट लें, बीच में स्वस्तिक बनाएं, चारों ओर 11 दीये रखें और थाली के बीच में 4 मुख वाला दीया रखें।
- अब 11 दीयों में चीनी डालें, या आप मखाना, खीर या मुरमुरा भी मिला सकते हैं।
- अगला महत्वपूर्ण कदम यह है कि पहले 4 दीये जलाए जाएं और फिर अन्य 11 दीये जलाए जाएं।
- अब रोली लें और देवी लक्ष्मीजी, सरस्वती और भगवान गणेश को लाल रंग और चावल के मिश्रण से तिलक लगाएं।
- अब सभी दीयों में रोली और चावल का मिश्रण रखें और फिर गणेश लक्ष्मी पंचोपचार पूजा करें।
- अगला कदम एक और दीया जलाना और उसे देवी लक्ष्मी के चित्र के सामने रखना है।
- अगरबत्ती व धूप जलाऐं और देवी लक्ष्मी के चित्र के सामने फूल और मिठाई रखें।
- अब 7 दीयों और एक मुख्य 4 मुंह वाले दीये को सामने रखें, बाकी के दीयों को लें और उन्हें घर के मुख्य द्वार पर रखें।
- न्यूनतम 108 बार लक्ष्मी मंत्र ‘श्रीं स्वाहा’ का पाठ करें और उनके आशीर्वाद के लिए भगवान गणेश और देवी लक्ष्मी का धन्यवाद करें।
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