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2010 अहोई अष्टमी

date  2010
Columbus, Ohio, United States

अहोई अष्टमी
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अहोई माता या देवी अहोई को समर्पित भारतीय पर्व को अहोई अष्टमी के नाम से जाता है। इसे मुख्यत: उत्तर भारत में कार्तिक मास के अँधेरे पखवाड़े अर्थात कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। यह पर्व करवा चौथ के चार दिन बाद तथा दीपावली के आठ दिन पूर्व मनाया जाता है। यद्धपि, गुजरात तथा महाराष्ट्र में प्रचलित अमानता पंचांग के अनुसार यह पर्व अश्विन मास में मनाया जाता है।

अहोई अष्टमी कब है? 

हिन्दू पंचांग के अनुसार अहोई अष्टमी का पर्व कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है।

अहोई अष्टमी का महत्व

अहोई अष्टमी के पर्व पर माताएं अपने पुत्रों के कल्याण के लिए अहोई माता व्रत रखती हैं। परंपरागत रूप में यह व्रत केवल पुत्रों के लिए रखा जाता था प्ररन्तु अपनी सभी संतानों के कल्याण के लिए आजकल यह व्रत रखा जता है। माताएं, बहुत उत्साह से अहोई माता की पूजा करती हैं तथा अपनी संतानों की दीर्घ, स्वस्थ्य एवं मंगलमय जीवन के लिए प्रार्थना करती हैं। तारों अथवा चंदमा के दर्शन तथा पूजन कर व्रत समाप्त किया जाता है।

यह व्रत संतानहीन युगल के लिए महत्वपूर्ण है अथवा जो महिलाओं गर्भधारण में असमर्थ रहती हैं अथवा जिन महिलाओं का गर्भपात हो गया हो, उन्हें पुत्र प्राप्ति के लिए अहोई माता व्रत करना चाहिए। इसी कारण से इस दिन को कृष्णा अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। मथुरा के राधा कुंड में इस दिन बड़ी संख्या में युगल तथा श्रद्धालु पावन स्नान करने आते हैं।

अहोई अष्टमी व्रत कथा

इस पर्व को मनाने की कथा है कि एक महिला के सात पुत्र थे। एक दिन वह मिट्टी लाने के लिए जंगल में गई। मिट्टी खोदते समय अनजाने में सेही के बच्चे की मृत्यु हो गई, जिसके कारण सेही ने उस महिला को श्राप दिया। इसके बाद कुछ सालों के भीतर उस महिला के सभी सातों पुत्रों की मृत्यु हो गई। उसे अहसास हुआ कि यह सेही द्वारा दिए गए श्राप का परिणाम है। अपने पुत्रों को वापस पाने के लिए उसने अहोई माता की पूजा कर छह दिन का उपवास रखा। माता उसकी प्रार्थना से प्रसन्न हो गईं और उसे सातों पुत्र पुनः प्रदान कर दिए।

अहोई अष्टमी व्रत विधान

अहोई अष्टमी व्रत करवा चौथ के समान है। अंतर केवल इतना है कि करवा चौथ व्रत पति के लिए रखा जाता है वहीँ अहोई अष्टमी का व्रत संतान के लिए रखा जाता है। इस दिन माताएं अथवा महिलाएं सूर्योदय से पूर्व जाग कर स्नान करने के बाद अपनी संतानों की दीर्घ तथा मंगलमय जीवन के लिए व्रत पूरी श्रद्धा से पूर्ण करने का संकल्प लेती हैं। संकल्प के अनुसार माताओं को बिना अन्न जल ग्रहण किये व्रत करना है तथा इसका समापन चन्द्र अथवा तारों के दर्शन के बाद करना है।

अहोई अष्टमी पूजा विधि

अहोई अष्टमी पूजा की तैयारियां सूर्यास्त से पूर्व संपन्न करनी होती हैं।

  • सर्वप्रथम, दीवार पर अहोई माता का चित्र बनाया जाता है। अहोई माता के चित्र में अष्टमी तिथि होने के कारण आठ कोने अथवा अष्ट कोष्टक होने चाहिए। सेही अथवा उसके बच्चे का चित्र में अंकित किया जाना चाहिए।

  • लकड़ी की चौकी पर माता अहोई के चित्र के बायी तरफ पानी से भरा पवित्र कलश रखा जाना चाहिए। कलश पर स्वास्तिक का चिन्ह बनाकर मोली बाँधी जाती है।

  • इसके बाद, अहोई माता को पूरी, हलवा तथा पुआ युक्त पका हुआ भोजन जिसे वायन भी कहा जाता है, अर्पित किया जाना चाहिए। अनाज जैसे ज्वार अथवा कच्चा भोजन (सीधा) भी मां को पूजा में अर्पित किया जाना चाहिए।

  • परिवार की सबसे बड़ी महिला परिवार की सभी महिलाओं को अहोई अष्ठमी व्रत कथा का वाचन करती हैं। कथा सुनते समय सभी महिलाओं को अनाज के सात दाने अपने हाथ में रखने चाहिए।

  • पूजा के अंत में अहोई अष्टमी आरती की जाती है।

  • कुछ समुदायों में चाँदी की अहोई माता जिसे स्याऊ भी कहते है बनाई व् पूजी जाती है। पूजा के बाद इसे चाँदी के दो मनकों के साथ धागे में गूँथ कर गले में माला की तरह पहना जाता है।

  • पूजा सम्पन्न होने के बाद महिलाएं अपने परिवार की परंपरा के अनुसार पवित्र कलश में से चंद्रमा अथवा तारों को अर्घ देती हैं। तारों के दर्शन से अथवा चंद्रोदय के पश्चात अहोई माता का व्रत संपन्न होता है।
Diwali Festival Calendar
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