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2049 शाकम्भरी पूर्णिमा

date  2049
Columbus, Ohio, United States

शाकम्भरी पूर्णिमा
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Choghadiya Muhurat on शाकम्भरी पूर्णिमा

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शाकम्भरी पूर्णिमा - महत्व और अनुपालन

शाकम्भरी पूर्णिमा को शाकम्भरी जयंती के रूप में भी मनाया जाता है जो शाकम्भरी नवरात्रि का पहला दिन या आरंभ दिवस भी है। हिंदू पंचांग के अनुसार, शाकम्भरी नवरात्रि अष्टमी तिथि के दिन शुरू होती है और पौष माह की पूर्णिमा तिथि के दिन समाप्त होती है। इस त्योहरा को आठ दिनों तक मनाया जाता है और शाकम्भरी पूर्णिमा, शाकम्भरी नवरात्रि का समापन या अंतिम दिन होता है।

कौन हैं देवी शाकम्भरी?

देवी शाकम्भरी देवी भगवती का अवतार हैं। इन्हें ‘हरियाली का प्रतीक’ भी कहा जाता है। शास्त्रों और हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, सभी शाकाहारी खाद्य उत्पादों को देवी शाकम्भरी का प्रसाद या पवित्र प्रसाद माना जाता है।

शाकम्भरी माता की कथा या कहानी क्या है?

हिंदू धर्म के पवित्र ग्रंथ, देवी भागवतम के अनुसार, शाकम्भरी देवी की कहानी बताती है कि एक बार दुर्गम नाम का एक दानव था, जिसने अत्यधिक कष्टों और तपस्या से सभी चारों वेदों का अधिग्रहण कर लिया। उसने यह भी वरदान प्राप्त किया कि देवताओं को की जाने वाली सभी पूजाएँ और प्रार्थनाएँ उसके पास पहुँचेगी और इस तरह दुर्गम अविनाशी बन गया। ऐसी शक्तियों को प्राप्त करने के बाद, उसने सभी को परेशान करना शुरू कर दिया जिसके परिणामस्वरूप धर्म का नुकसान हुआ और इसके कारण सैकड़ों वर्षों तक बारिश नहीं हुई, जिससे गंभीर अकाल की स्थिति पैदा हो गई।

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सभी साधु, ऋषि व मुनि हिमालय की गुफाओं में चले गए और उन्होनें देवी माँ से मदद पाने के लिए निरंतर यज्ञ और तप किया। उनके कष्टों और संकटों को सुनकर, देवी ने शाकम्भरी को अनाज, फल, जड़ी-बूटियाँ, दालें, सब्जियाँ, और साग-भाजी के रूप में अवतरित किया। शाक शब्द का अर्थ सब्जियों से है और इस प्रकार देवी, शाकम्भरी देवी के नाम से प्रसिद्ध हुई। लोगों की दुर्दशा को देखकर देवी शाकम्भरी की आंखों से 9 दिन और रात तक लगातार आँसू बहते रहे। अतः, उनके आँसू एक नदी में बदल गए और अकाल की स्थिति का अंत हो गया।

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देवी ने मनुष्यों और ऋषियों को राक्षस दुर्गम की क्रूरता से बचाने के लिए उसके खिलाफ भी युद्ध किया। देवी शाकम्भरी ने अपने अंदर 10 शक्तियों को प्रकट किया और अपनी सभी शक्तियों के साथ दुर्गम को मार डाला। और सभी चारों वेद ऋषियों को वापस कर दिए, चूंकि देवी ने राक्षस दुर्गम को मारा था, अतः उन्हें दुर्गा नाम भी दिया गया। उस समय से भक्त शाकम्भरी पूर्णिमा का व्रत रखते हैं और देवी का आशीर्वाद पाने के लिए और अपने घरों में खुशहाली की कामना करते हैं।

शाकम्भरी पूर्णिमा का महत्व क्या है?

शाकंभरी पूर्णिमा का बहुत बड़ा महत्व है क्योंकि यह शाकम्भरी देवी की जयंती भी है। भारत में विभिन्न स्थानों पर, इस दिन को पौष पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है जिसे हिंदू कैलेंडर के अनुसार एक अत्यधिक महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। इस्कॉन के अनुयायी या वैष्णव सम्प्रदाय इस दिन की शुरुआत पुष्य अभिषेक यात्रा से करते हैं क्योंकि यह माघ की शुरुआत भी है जो हिंदू कैलेंडर के अनुसार धार्मिक मितव्ययिता का महीना है। यदि लोग इस विशेष दिन पर पवित्र स्नान करते हैं तो उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है और साथ ही वे शाकम्भरी पूर्णिमा के दिन दान करके भी अत्यधिक गुण प्राप्त कर सकते हैं।

शाकम्भरी पूर्णिमा पर क्या करें?

देवी शाकम्भरी को देवी दुर्गा का सौम्य रूप माना जाता है जो अत्यंत दयालु, कृपालु और स्नेही हैं। इस दिन, लोगों को शाकम्भरी देवी की पूजा और प्रार्थना करनी चाहिए, दान करना चाहिए, उपहार देने चाहिए, व्रत करना चाहिए, तीर्थ यात्रा करनी चाहिए, पवित्र स्नान करना चाहिए और देवी का दिव्य आशीर्वाद पाने के लिए अच्छे कर्म करने चाहिए।

माँ शाकम्भरी की पूजा विधि

  • भक्तों को सुबह जल्दी उठकर, पवित्र स्नान करना चाहिए और फिर देवी शाकम्भरी की मूर्ति को श्रद्धांजलि अर्पित करनी चाहिए।
  • भक्तों को बाणशंकरी प्रतः स्मरण मंत्र का जाप करना चाहिए।
  • देवी शाकम्भरी की मूर्ति या तस्वीर को फल और मौसमी सब्जियों से सजाना चाहिए।
  • भक्तों को देवी शाकम्भरी के मंदिर जाना चाहिए।
  • देवी को पवित्र भोजन (प्रसादम) अर्पित करना चाहिए।
  • परिवार के सभी सदस्यों के साथ आरती की जानी चाहिए।
  • सभी भक्तों को पवित्र भोजन वितरित किया जाना चाहिए।
  • व्रत रखने वाले व्यक्ति को शाकम्भरी कथा अवश्य पढ़नी चाहिए।

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पुरे वर्ष भर में पड़ने वाले पूर्णिमा व्रत

हिन्दू कैलेंडर जो की चैत्र माह (मार्च-अप्रैल) से प्रारम्भ होता है के अनुसार वर्षभर में पड़ने वाली पूर्णिमा निम्नानुसार है:-

क्र. सं. हिंदू महीना पूर्णिमा व्रत नाम अन्य नाम या उसी दिन के त्यौहार
1 चैत्र चैत्र पूर्णिमा हनुमान जयंती
2 वैशाख वैशाख पूर्णिमा बुद्ध पूर्णिमा, कूर्म जयंती
3 ज्येष्ठ ज्येष्ठ पूर्णिमा वट पूर्णिमा व्रत
4 आषाढ़ आषाढ़ पूर्णिमा गुरु पूर्णिमा, व्यास पूजा
5 श्रावण श्रावण पूर्णिमा रक्षाबंधन, गायत्री जयंती
6 भाद्रपद भाद्रपद पूर्णिमा पूर्णिमा श्राद्ध, पितृपक्ष आरंभ
7 अश्विन आश्विन पूर्णिमा शरद पूर्णिमा, कोजागरा पूजा
8 कार्तिक कार्तिक पूर्णिमा देव दीपावली
9 मार्गशीर्ष मार्गशीर्ष पूर्णिमा दत्तात्रेय जयंती
10 पौष पौष पूर्णिमा शाकंभरी पूर्णिमा
11 माघ माघ पूर्णिमा गुरु रविदास जयंती
12 फाल्गुन फाल्गुन पूर्णिमा होलिका दहन, वसंत पूर्णिमा

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